धोनी से सौ साल पहले !

अगर मैं कहूँ रांची, तो आपके ख्याल में सबसे पहले नाम आएगा महेंद्र सिंह धोनी, जर्सी नंबर 7. और आना भी चाहिए धोनी के कप्तानी ने भारत को बुलंद पर पहुचाया, शायद ही कोई ऐसा मुकाम होगा जो धोनी से अछूता रहा हो , बेशक धोनी की मेहनत और लगन ने उसे घर घर का सितारा बनाया, लेकिन एक बात भी मानने वाली है की ये भी धोनी की किस्मत ही थी के वो उस समय पर आया जब हर हाथ में स्मार्ट फ़ोन, अनलिमिटेड इन्टरनेट के साथ, और फिर क्या हर शॉट, हर कैच, स्टंप, रन आउट सब के सब रील्स बन कर दुनिया में छा गये. लेकिन अब से लगभग 100 साल पहले रांची ने एक ऐसा भी सितारा दिया था जिसकी चमक पूरी दुनिया ने देखी, विज्ञान के क्षेत्र में उसने ऐसे ऐसे कारनामे किये की लोग बस देखते ही रह गये, एक वैज्ञानिक होने के बावजूद उसने धर्म, अध्यात्म को विज्ञान के साथ कुछ ऐसे जोड़ के दिखाया के दुनिया आज भी अचरज में है

रांची से चमकने वाला वो सितारा था डॉ रुस्तम रॉय. सन 1924 में नरेन्द्र कुमार और राजकुमारी रॉय के घर जनम हुआ एक लड़के का, हेर माँ बाप की तरह बड़े प्यार से नाम रखा रुस्तम, शायद माँ बाप को भी ये अंदाज़ा तो नही था कि ये बच्चा कितना बड़ा और अमर नाम बनाए वाला है, शुरुवाती पढाई के लिए डॉ रुस्तम रॉय ने रिख किया दार्जिलिंग के फेमस स्कूल सैंट पॉल का , वहां भी वो एक जाने माने विद्यार्थी बन चुके थे

इसके बाद डॉ साहब रुख करते है पटना का और वहां से अपनी ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी करते है, और 1946 में जब भारत आजादी से कुछ कदम ही दूर था रुस्तम रुख करते है अमेरिका की प्रसिद्द पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी का और अगले दो सालो में उन्होंने सिरेमिक विज्ञान में पीएचडी की डिग्री हासिल की, असल में ये डिग्री न सिर्फ डॉ रॉय के लिए बल्कि दुनिया के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हुई कि प्रतिभा सरहदों की मोहताज़ नही,

डॉ रॉय के न भूले जाने वाले योगदान

  •  1962 में Materials Research Laboratory  की स्थापना की 
  • सिरेमिक और बोरॉन नाइट्राइड  पर क्रान्ति लाने वाला शोध किया
  • डॉ. रॉय ने माइक्रोवेव प्रोसेसिंग को पहली बार मटेरियल साइंस में प्रयोग कर अनुसंधान में नई दिशा दी।
  • डॉ. रॉय ने भौतिकी, रसायन, इंजीनियरिंग और समाज से जुड़ी बातों को जोड़कर मिलकर रिसर्च करने का तरीका अपनाया, जिससे नई खोजें आसान हुईं।
  • डॉ. रॉय ने Whole Person Healing में विज्ञान, आयुर्वेद, होम्योपैथी, योग, ध्यान और आध्यात्मिकता को एक साथ जोड़कर इलाज का एक नया और संतुलित तरीका सुझाया।

परिवार में भी वैज्ञानिक साझेदारी

1948 में P.H.D करने के बाद डॉ रॉय ने विख्यात सामग्री वैज्ञानिक डेला मार्टिन से विवाह किया, उन्होंने जीवन का साथी भी ऐसी महिला को चुना जिसकी रुचियाँ और द्रष्टिकोण भी ठीक रुस्तम रॉय की तरह थे,डेला मार्टिन, डॉ. रुस्‍तम रॉय की सिर्फ जीवनसाथी नहीं थीं, बल्कि वे उनकी वैज्ञानिक यात्रा की साथी, सलाहकार और एक प्रेरणास्रोत भी थीं, जिन्होंने अनुसंधान और जीवन दोनों में गहराई जोड़ी।

पुरूस्कार जिनसे दुनिया ने नवाज़ा

  •  जापान की सरकार ने Order of the Rising Sun से नवाज़ा 
  • इनके नाम पर Rustum Roy Lecture Award पुरुस्कार की शुरुवात हुई
  •  जापान , रूस , स्वीडन और भारत की विज्ञान अकादमी के सदस्य  बने   
  •  National Academy of Engineering के पहले भारतीय सदस्य बने 

एक सबक सबके लिए

डॉ रॉय ने एक सबक दुनिया को दिया है कि बड़ा बनने के लिए शुरुवात छोटे और साधारण कदमो से ही होती है, और केवल प्रयोगशाला ही नही आप मानवता, अध्यात्म, चिकित्सा और विज्ञान को भी आपस में जोड़ के परिवर्तन ला सकते है

रांची से निकल कर अमेरिका की बड़ी बड़ी प्रयोगशालाओ तक का सफ़र अनंतकाल तक युवाओ के लिए एक प्रेरणास्रोत बना रहेगा

अगर आपका इरादा सच्चा और पक्का है , तो कोई भी मजिल असंभव नही है 🙂

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